25.11.18

इश्क़ अनोखा

संगीत के सात स्वर , आकाशगंगा के असंख्य तारे , उपवन के मनमोहक पुष्प , नन्हे बच्चे की हंसी या रोना आपको तब तक आनंदित नहीं कर सकते है जब तक आप में प्रेम ना हो ! या आप में प्रेम कम हो ! ओशो कहते है की – जिससे आप प्रेम करते है उसके प्रति अगर आप के मन में श्रद्धा का भाव नहीं है , तो आप का प्रेम महज एक आकर्षण है ! संगीत के इश्क में डूबे किसी कलाकार को देखिये , ढोलक पर पड़ रही उसकी उगलियाँ प्रेम का ऐसा पाठ है जो हमें बताती है किसी के कितना करीब जाना चाहिए ! वही बज रही बांसुरी को देखिये कितना प्यारा रिश्ता है न , कि एक की श्वास किसी की आवाज बनकर पूरे वातावरण को आनंदित कर देती है ! यही तो प्रेम है जहा न किसी का कम महत्व है न किसी का ज्यादा !

हम कभी किसी से प्रेम नहीं करते है बस अपना अधिकार जमाते रहते है ! फिर चाहे वह बीबी हो , बहन हो , प्रेमिका/बीबी हो या ‘माँ’ ही क्यों न हो ! जब तक वह हमारी जरूरतों/उम्मीदों को पूरा करते है ! हम प्रेम में रहते है ! और जैसे जरूरतें/उम्मीदों पूरा करने में असमर्थ वही हमारे लिए बोझ लगने लगते है ! या यूँ कहू हमारा प्रेम उनके प्रति कम होने लगता है ! अगर आप सच में प्रेम में है तो हरेक कृति आपको खूबसूरत लगेगी ! किताब का हर पन्ना , संगीत के सारे यन्त्र , दुनिया की हर चीज , हर जानवर , हर पक्षी , हर पेड़ , हर पुष्प ! भोर ऐसी लगेगी जैसे पिता को आपको पहला कदम रखना सीखना , दोपहर जैसे इन्तजार के गुस्से में बैठी प्रेमिका/पत्नी और साँझ जैसे माँ का शिवालय के पास लगी तुलसी पर जलाये गए दीप की हल्की सी रोशनी !

जब प्रकृति का हरेक कण , अंडज , सूक्ष्म , स्थूल , जन्मा , अजन्मा , ज्ञात , अज्ञात हर कोई अपने प्राणों सा प्यारा लगने लगा ! जैसे लगे की मेरी हर सांस बस इनकी है ! इनके बिना मेरा जीवन ही नहीं है ! जीवन ऐसे लगने लगे जैसे मूल्यों का संगम हो गया है ! हरेक के दुःख निवारण की मन आकांक्षा हो , सबको अधिकार , सबको सम्मान देना जान जाये तभी आप में प्रेम है ! जब वृद्ध-बीमार माँ आपको उतनी ही प्यारी लगे जितनी बचपन में लगती थी ! और बीबी/प्रेमिका , बहन या दोस्त के मोबाइल में लगे पासवर्ड से उनके चरित्र का मूल्याङ्कन आप न करे ! और जब सब आपकी जरूरतों/उम्मीदों के मुताबिक न हो तब भी आप उन्हें उतना ही मान–सम्मान दे ! तभी आप प्रेम में है ! जब सारे भेद ही मिट गये , न कुछ गेरुवा रहा न कुछ धानी ! जब भजन , शबद-कीर्तन , आयातों , और प्रार्थना में कोई अन्तर ही न लगे ! कोई राग नहीं , कोई दोष नहीं , कोई वैमनष्य नहीं , कोई ईष्या नहीं ! वही तो इश्क में होना होता है ! जैसे खुदा हो जाना ! हां सच में इश्क में होने का मतलब है खुदा हो जाना ………!


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