6.12.20

बोलों ना

मौन के सुख – लाभ में सच से बहुत भागे से लोग
अन्दर के विलाप से चुपचाप औ’ अभागे से लोग
एक झूठ तुमको जब लील जायेगा अभी
क्या बचेगा ?
क्या रहेगा ?
बोलों ना फ़िर तुम अभी

सांझ को आएगी न ठंडी हवा की बहार
प्रेम तुमको दे ना पायेगा फ़िर कभी अपनी पुकार
गुम हो जाएँगी शोखियाँ और मीठी छुवन भी
क्या बचेगा ?
क्या रहेगा ?
बोलों ना फ़िर तुम अभी

एक बोली प्यार की फ़िर न छाएगी कभी 
कूक कोयल की जंगल से न आएगी कभी 
रात को खिड़की फिर न गाएगी कभी
तितलियाँ फूलों के पास न जाएँगी कभी 
फ़र्क मिट जायेगा जब क्या सच और झूठ ही 
क्या बचेगा ?
क्या रहेगा ?
बोलों ना फ़िर तुम अभी ! 

1 comment:

  1. बहुत ही खूबसूरत कवितायें पढ़ने को मिली आभार

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