25.10.21

बिखरें - बिखरें !

अवसाद . सन्नाटा .. अधजगी रातें 
कान में बजती अनगिनत बेगैरत आवाज़ें 
और टूटता तिलिस्म 

कविता हमेशा कविता नहीं होती है 
वह suicide note लिखने का अभ्यास भी हो सकती है 
या ऱोज जीते - जी मरने का हलफ़नामा भी 

दुःख कभी नहीं साथ छोड़ने  वाला सहयात्री है 
जो पहाड़ चढ़ते हुए 
जंगलों को चीराते हुए आदमी के संग - संग चलता है 
और दुःख न होना भी एक क़िस्म का भयानक दुःख है 

खैर - आगे बढ़ने के लिए / जीने के लिए बस एक कोई भ्रम ही काफ़ी होता है 
जैसे तितलियाँ  सुनेंगी एक दिन हमारी कविता 
और बिखेर देंगी हमारी पेंटिग पर ढेर सारा कलर 
किसी दिन 
एक दिन !

© मनीष 

  





1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज मंगलवार 26 अक्टूबर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है....  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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