29.5.22

आख़िरी क़िस्त

(एक)
प्रकाश और रंगों के फ़रेब से बनी हुई कोई कलाकृति
या धीरे – धीरे कोई क़ातिल सीने में उतार रहा हो खंजर
कोई प्रतिबिम्ब सुनहरा सा - जो छूते ही बिख़र जाने पर आमादा हो
घर के कोने में इधर – उधर छिपा हुआ प्रेत
हाय तुम .... और तुम्हारा इश्क़ !
 
(दो)
 इस उम्मीद में निकले कि – टूटे हुए साज मरम्मत के बाद बनेंगे अच्छे
और वह फ़ेंक दिए गए हो
जैसे की उम्र और सभ्यता के साथ अच्छी होनी थी भाषा
पर वह गिरती गयी – तमाम बेकार चीज़ों के वास्ते
जैसे वह सब जो होना था नहीं हुआ
पेड़ो का बढ़ना / पर्वतों का टिके रहना 
और नदियों/समन्दर का ख़ुश रहना
धूप का अच्छा होना / रातों का शांत
हँसना फूलों का
नदी – पर्वत -  झरना
पत्ती और तितलियाँ
यह सब नदारद है
कुछ और है ही नहीं  
हाय तुम .... और बस तुम !

Love:
Obsolete - A thing no longer in use

 
© मनीष के. सिंह
 

10 comments:

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 31 मई 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. इस तुम का सम्बोधन यदि मनुष्य से लें तो सच ही आज मनुष्य ने अपने स्वार्थ हेतु सब कुछ नदारद कर दिया है , पाया कुछ नहीं बस खोया ही है ।
    मुझे दूसरी रचना अच्छी लगी । पहली की गहराई तक पहुंच नहीं पाई ।।

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    1. जी धन्यवाद!
      पहली कविता काफी व्यक्तिगत लग रही है शायद ! और दूसरी मे तुम का अर्थ अपने सही कहा हैं।
      आभार आपका।। 🙏

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  4. उम्दा सृजन।
    किसी एक ही भँवर में घूम रहा है मन।
    व्यथित हृदय का लेखन।

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    1. बेहद शुक्रिया मैम !! सच कहा आपने

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  5. प्रेम में डूबी गूढ़ अनुभूतियों की परिभाषा अच्छी लगी ।

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    1. धन्यवाद जिज्ञासा जी ।।😊

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  6. बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुती

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  7. धन्यवाद संजय जी आपका 🙏😊

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