20.12.22

नाव, नदी और झूठ

मुझे हमेशा से भ्रम रहा कि - 
कवि और वकील होना अलग- अलग पेशा है 
दुनियादारी और मक्कारी समानार्थी शब्द नहीं है
प्रेम और झूठ के मायने तो कतई एक नहीं हो सकते है 
 
नहीं भेद है कोई  -
पिता - पुत्र में 
भाई - भाई में 
भाई - बहन में  
दोस्त - दोस्त में 
प्रेम - प्रेम में 

एक नदी है 
जिसमे हर तरफ झूठ तैर रहा है 
पुराने उखड़े हुए रेलवे - ट्रैक पर 
सांस उलझ - खुरच कर जा रही है 

नदी के पार कही बहुत दूर  
एक दीप है 
और उससे बहुत दूर कही है - ख़ुशी  

घर की एकदम सकरी सी बालकनी में 
एक फूल खिलने की जिद में है 

आकाश में अनन्त तारे है 
हरेक के अनन्त दुःख 
कविता और दुख का कोई अन्त नहीं  है 
कोई अंत नहीं है झूठ का 
नदी का !

- मनीष 

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