21.12.22

बंदर और मदारी

हमारे इर्दगिर्द मदारियों का झुण्ड है 
जो तमाशा दिखा के हम बहुत देर तक फ़सायें रखते है 
सच से बिल्कुल दूर 

मै नहीं कह रहा है
प्रेमिकाएं झूठी है / या पति मदारी है 

वह नेता - जिसके पास सिर्फ़ लफ्फाजी के अलावा कुछ नहीं है 

कवि भी मदारी नहीं है 
जिन्होंने सदियों पहले लिखी थी -चार पंक्तियाँ 
जिनके तुक भी नहीं मिले 
और अभी तक वही खा रहे है 
मर्सिया से लेकर भक्ति 
हरेक मौके पर गा रहे है 

मदारी नहीं है वह सब शिक्षक जिनके पास ज्ञान और नियम के नाम पर वायरल वीडियोस है
या सर्कस के मुर्गे जो प्राइम-टाइम में आते है 
लेख़क / पत्रकार / धर्मगुरु - विषय से ऊपर है यह सब 'छात्र'

इश्क़ में मदारी है वें दोनों - या कोई एक ?
या शायद कोई और ?

पर न जाने क्यूँ सब ओर तमाशा चल रहा है 
मदारियों से बच के रहे 

सनद रहे - 
न मै निन्दक हूँ 
न मदारी 
या बन्दर !

-मनीष 

  
 

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