9.5.23

रौशनी के पार

बादशाह का हुक्म है -
शहर में रौशनी का बंदोबस्त हो 
तो सारे दीये जला दिए गए है  
यहाँ किसी दूसरे की रजामंदी के कोई मायने नहीं है 
ज़रा सा विरोध का स्वर उठे तो -
या जिनको नहीं पसंद हो इतना चमकता उजाला 
उनकी आँखों को रौशनी से भर दिया जाये 
यही शासन है (?)  

घर में बाहर से एक छोटा सा दरवाजा है -
भीतर कई बड़े - बड़े दरवाजे है 
जिनमे बंद/रह रहे 
खिड़की से झांकते कई ख़्वाब
कई सारे इंक़लाब 
सन्नाटे , चुप्पी और अनगिनत बेईमान चीजों को 
वक़्त/ज़रूरत की बात बताया जा रहा है  
सारे गीत/राग और अपनेपन को हद दर्जें तक शर्मिंदा किया जा रहा है 
यही घर है  (?)

एक जंगल है -
जिसकी पत्ती - पत्ती को सूखा देने की 'पंच-वर्षीय' योजना है 
एक प्रेत है 
जो अपने लम्बे - नुकीले नाखूनों से 
बाएं भाग की धड़कती चीज को धीरे - धीरे खा रहा है 
एक फूलों का बगीचा है 
जिससे रेत झर रही है 
एक नदी है -
जिसके मुहाने पर खड़े होकर सांस सूख रही है 

बाकी सबकुछ है 
अनुपस्थित है वह सारी चीजें जिन्हे होना चाहिए था 
यही प्रेम है  (?)
© मनीष के. 

2 comments:

  1. एक फूलों का बगीचा है
    जिससे रेत झर रही है
    एक नदी है -
    जिसके मुहाने पर खड़े होकर सांस सूख रही है
    क्या बात है..
    सादर

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