9.7.23

प्रेत-कथाएं

(एक)
कई गुमनाम प्रेम-पत्रों से 
कई अपरिचित प्रेम-कहानियों से 
कई गुमनाम लाशों से
कई बेवजह की पथरीली सड़कों से 
भर दिया गया तमाम नदियों को 
न नदी में पानी है 
न आदमी में 

(दो)

उन दिनों उसका इश्क़ 
जैसे लख्त-ए -जिगर था 
जैसे किसी ख़रगोश का 
उजला, नन्हा, रेशमी बच्चा 
अब एक प्रेत है 
जो प्रेम की शक्ल में 
थोड़ा - थोड़ा कलेजा रोज़मर्रा खाता है !

(तीन)
एक प्रेत है 
जिसे प्रेम से नफ़रत है 
दूसरा जो दिन-रात 
तलाश रहा है प्रेम 
एक दुनिया है 
जिसमे सारे मानक दुनियावी है 
जिसमे प्रेम/प्रेत है  :  या 'डिस्‍लेक्सिया' है 
एक मैं हूँ या मेरा प्रेत 
जो ख़ोज रहा है - 
खिड़की से तुम्हारा झांकना 
तुम्हारे सफ़ेद फूलों का गजरा 
तुम्हारा बनाया गया 'कोलम' 
कुछ तमाम बातों का  प्रेत है 
जो तहस - नहस कर रहा है सबकुछ
मसलन तुम्हारा मुस्कुराना 
मेरा मानना  !

- मनीष के.

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