10.7.23

प्रेम-कथाएं

(एक)
वर्षों से पड़े अकाल के बीच 
कोई पुराना गीत गातें हम 
या तुम गुनगुनाती हुई मेरी किसी कविता की अधभूली सी पंक्ति 
या किसी नन्हे पौधे को अपने हिस्से का 
थोड़ा - थोड़ा पानी देते हुए 
और या यूँ कह लो - 
कोई भरम/भरोसा की तुम्हारा होना ही सबकुछ है 

(दो)
हमने आंसुओं से भरे जीवन में रोपे 
इक्कठे देखे कई बुलंंद  ख़्वाब
नदियों में लौटने लगा उनके  हिस्से का पानी 
कविताओं का सूखापन ख़त्म हो रहा है 
नन्हा ख़रगोश आँगन में पूजा के फूल खा रहा है 
मै, हमारा ईश्वर ख़ुश है 
और सबसे जरुरी तुम !

(तीन) 

खिड़कियों से बह रही है सर्द-बयार 
दूर कही हुयी बारिश से महक रही है घर की मिट्टी
धरती का सूखापन ख़त्म हो रहा है 
या यूँ कह लूँ - जीवन का 
और तुम्हारा हँसना 
जैसे राग-मल्हार 

- मनीष के.

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