29.12.23

साल के आखिरी शुक्रवार को एक ख़त

चिता के फूल

कही पढ़ा था जिसका हिंदी तर्जुमा है  - 
' मै उससे इतनी मोहब्बत करता हूँ कि मै नहीं चाहता हूँ कि मै उससे पहले मरुँ ! मुझे मालूम है ख़त्म हो जाने की पीड़ा ! मै नहीं चाहता हूँ कि कभी उसे यह पीड़ा मिले'  
प्रेम अब रिक्तताओं का पर्याय है ! वह सब हम दूसरे में खोजते है जो हम में नहीं है ! और यह शायद गलत है !
हम अगर प्रेम से भरे हो तो शायद हम प्रेम करने के हक़दार है ! तभी हम दूसरे को प्रेम कर सकते है !  पर हमारा खालीपन खा रहा है ! वह बस उलूल-जलूल बातों में उलझा है !
वह आते है जैसे कोई प्रेत, फिर अपनी बीती कहानियों से , रोज़मर्रा की दिनचर्या से भर देते है आपको ! हम पतंग से उड़ रहे है बिना किसी डोर के ! या उलझी हुयी डोर में इंतज़ार में है की डोर कौन कटेगा ?
सारे मौन, हंसी और यह घुटन ... यह सब लोग... कई सारे प्रेत ... और दिन-बा-दिन चुनते है अपनी ही चिता के फूल !!

एक घर
वह घर सीढ़ीनुमा चाय के बागानों के बीच, जहाँ बस एक रास्ता जाता है ! अकेला खड़ा है ! 
उसकी छतों के ऊपर रखे गमले में तामाम खिले हुए फूल उसके ऊपर तैरते हुए तामाम बादल, कुहरा और हलकी सी सर्द में डूबी सूरज की किरणे ! 
लकड़ी की आग से हलकी गरम दीवारें , खिड़की पर फ़ैली धूप और तुम्हारे होने की ख़ुशी.
एक घर पहाड़ पर - कोलम, ईश्वर का भोग और ख़ुशी ... पौधों और मन का हरापन . एक घर !

पर यह कैसा ख़त है ?
यह सच है ? 
फरेब है ?
यह सच -फरेब के बीच का कुछ .... जैसे हम-सब, हम -तुम या सब !

नए साल में या कभी भी न-इंसाफी नहीं हो - मजबूर को सहारा और मेहनत को बराबर न्याय मिले ! शायद तरसे हुए को थोडा प्यार !
एक शेर मदन मोहन दानिश साहब का फिर विदा   - 
ये कहाँ की रीत है जागे कोई सोए कोई 
रात सब की है तो सब को नींद आनी चाहिए !!


- मनीष के. सिंह 
२९ दिसम्बर २०२३ 

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 31 दिसम्बर 2023 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  4. बहुत सुन्दर

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  5. वाह! बहुत खूब!

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