22.2.24

चौराहा

मै जिस चौराहे पर खड़ा हूँ 
मेरे ठीक सामने 'विचारधारा'  (हिंदीभाषियों के लिए 'Ideology')
झूठ के बाज़ार में किसी हकीक़त से भी ज्यादा बौनी होकर 
सबकुछ पा लेने /बिक जाने की  हवस में तब्दील हो चुकी है

मेरे बाएँ तरफ़ - हरेक चीज को झूठ कह देनें का फरेब चल रहा है 
मेरे दायें तरफ - खतरा देखकर रेत सर में डालने को होशियारी और राष्ट्रवादी बताया जा रहा है 
मुझे कही नहीं दिख रहा है - टूटे परिवार की चिंता, भुखमरी
या फिर उस आदमी का रुदन जो इस सदी में महज आई.डी./पासवर्ड रह गया है 

तमाम आदमियों की मौत अब बस हादसा है 
मुझे नहीं पता है कि मै प्रेम चुनुँगा या प्रेत मुझे 

मौन के स्वर शोकाकुल है 
और बाकी सब कुछ बाज़ार है 
कोई तो है जो रक्तकोशिकाओं को खाली कर रहा है 

सनद रहे - मै चौराहे पर हूँ ! 

© मनीष के. 

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