22.2.24

उम्मीद

उन तालाबों को उम्मीद देना 
जिन्होंने नदियों का भ्रम रखा है 
पेड़ के आख़िरी पत्तों को जिन्हें उम्मीद है 
पतझर बीत जाने की
 
उम्मीद जो आँखों में थी 
श्रम/वेतन/रोटी और नींद की 
जिन्हें आँखों में पत्थर नहीं होना था 

उम्मीद उस नन्ही बच्ची को इन्साफ 
जिसकी प्यारी छोटी साइकिल - 
दंगाईयों और सरकार के सर्कस में जला दी गयी 

उम्मीद उस पहले चुम्बन/आलिंगन की 
जो बिना किसी अतिरिक्त भार के आता है 

सनद रहे - उम्मीद से खूबसूरत कुछ नहीं है !

© मनीष के. 

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 25 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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