उन तालाबों को उम्मीद देना
जिन्होंने नदियों का भ्रम रखा है
पेड़ के आख़िरी पत्तों को जिन्हें उम्मीद है
पतझर बीत जाने की
जिन्होंने नदियों का भ्रम रखा है
पेड़ के आख़िरी पत्तों को जिन्हें उम्मीद है
पतझर बीत जाने की
उम्मीद जो आँखों में थी
श्रम/वेतन/रोटी और नींद की
जिन्हें आँखों में पत्थर नहीं होना था
उम्मीद उस नन्ही बच्ची को इन्साफ
जिसकी प्यारी छोटी साइकिल -
दंगाईयों और सरकार के सर्कस में जला दी गयी
उम्मीद उस पहले चुम्बन/आलिंगन की
जो बिना किसी अतिरिक्त भार के आता है
सनद रहे - उम्मीद से खूबसूरत कुछ नहीं है !
© मनीष के.
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 25 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDelete