21.4.24

सपनों का फरेब

यह कोई गद्य नहीं है ! या कोई अतुकांत कविता भी नही है ! यह एक विशुद्ध कहानी है ! यह तब की क्रूर कहानी भी नहीं है जब भारत, ईरान और रूस की स्वेत जातियां एक होती थी ! यह शायद उससे पहले की कहानी जब पिरामिड की सभ्यता से पहले देवदासी रुना और एकिंदु 'प्रेम ' जैसे किसी सवेंग  की तलाश में थे  ! जिस कहानी के बाद मिस्त्र ने पिरामिड बनाना सीखा ! मृत्यु से बचने की संजीवनी लेकर मनुष्य सम्राट गिलगमेश अभी लौटे नहीं है ! यह ऐसी कोई ऐतिहासिक प्रेम और रोमांच से भरी कहानी भी नहीं है

यह कालखण्ड की कहानी नहीं है ! जिसमें असाधारण बल वाले राजा, जातियों में बटी प्रजा, खून से लतपथ राज्य ध्वज की कहानी है ! जिसमे मोहित हो गयी दूसरे देश की राजकुमारियाँ, जबरन लायी गई रानियाँ .... या बिल्कुल अभी अपने राज्य प्रेम के लिए ... किसी राजकुमार को बंदी बनवा के, ख़ुद के लिए मृत्यु दंड मांगती हुई राजकुमारी है ! इस कहानी में कुछ भी देवत्व जैसा नहीं है ! कुछ भी उम्मीद से बढ़कर नही है ! कुछ भी शायद उम्मीद सा भी नहीं है !

यह नदियों की कहानी नहीं है ! जिसमे कही से कही आ के मिल गयी सारी नदियाँ ! यह नर्मदा और सोन की लोक -कथा भी नहीं है !  और नदियों में समाहित हो गयी कितनी पीढियां ! और फिर धीरे – धीरे पीढियां लील गयी सारी नदियाँ ! सनद रहे - शुद्धता का गुरुर भी आपको किसी लम्पट की तरफ़ शायद ले जाए !

यह बस एक कहानी है ! यह कहानी है उन फ़रेबी सपनों की जब वह रेशम के धागे में ,आग का गोला बांधकर  नचाता रहा और उसे लगा शायद यही प्रेम है ! उसे लगा ख़्वाबों के बाहर भी ‘ सकल बन फूल रही सरसों’ जैसा मखमली सा कुछ होगा ! यह कुछ ऐसा जिसमे लोग कहते थे – ‘ कि कुछ बुरा तो मेरे दुश्मन के साथ भी नहीं हो’ ! जिसमें बहुत कुछ बचा लेते थे लोग कहने से पहले / बोलने से पहले ! जिसमे सब विशुद्ध 'बनियवाद' नहीं था ! जिसमें शायद कल्पना में जीने या सपने देखने या स्वतंत्र होने की सजा नहीं थी ! वह होते थे प्रेम में शायद या शायद नहीं ! या शायद वह ‘बड़े’ होते थें प्रेम जैसे सवेंग से ! साँस खुरच कर जी जाने वाली जिंदगी से ! जिनके प्रेम का मुक्कम्मल होना इस बात पर निर्भर नहीं करता था कि - वह रोज़मर्रा का हुआ या नहीं ! Please note that nothing is beautiful if it does not include 'Freedom'. Freedom of choice for being together, crying, laughing, or separating. 

वह रेशम का धागा जल चुका है ! आदमी अब सूखी हुई नदी की बची रेत फांक रहा है ! बारूद विश्व शांति का नया नियम है ! नियम है – अधेरों को उजाला कहा जाये ! बकरी और लोमड़ी ने मिलीजुली सरकार बना ली है ! घरों से उठ रही है सड़ांध – रिश्तों की, रेफ्रीजरेटर में रखे ताजे फ़लों की ! दिल, बदन अब दिमाग के लिए काफ़िर हो चुके है ! प्रेम में बची है ज़िल्लत, और अथाह नफ़रत ! जो रोज़मर्रा जैसे होकर ना मर जाये वह अब प्रेम नही है ! उसे टाइमपास की 'केटेगरी' में रखा जायेगा ! हमने अपनी सोच और भावना सबकी देखादेखी में नीलाम कर दी है ! सब कुछ टेंडर में दे दिया गया है ! बची है पथरीली आँखें , जिनके नसों में कुछेक शब्द तैर रहे है ! सिर बदन पर रखा कोई बोझ है !

एक टूटा हुआ आदमी रुबाब(Rubab) बजाता हुआ गा रहा है – ‘ मतकर माया को अहंकार ...’ ! नदी के मुहाने शेर, गाय दोनों प्यास से जूझ रहे है ! उसी रेगिस्तान में इक फूल और एक आम का पेड़ उगने की धुन में है ! समय,संभ्यता और एक पुराना प्रेमी इनको जड़ से उखाड़ के तेज़ाब डालने की फिराक में है !  सांसे खुरच रही है ! पर यह बस नाटक है ! होंठ अपशब्दों के पाप के भागी है ! बुद्धि, भावना की हत्या कर चुकी है ! एक तोता उड़ने की हद में है ! पथरीली आखें या होठ, सूखे फूल या नदी ! कोई रो रहा है – किसी की उंगली – एक गर्दन काटते हुए कट गयी है ! पर मुहिम है की जिसकी उंगली कटी है उसे इन्साफ मिले ! पता नहीं चल पा रहा है कि – सपनों में फ़रेब है या सपने ही फ़रेब के है !

 - मनीष के.

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