वह सिर्फ़ प्यार में ही नहीं, रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी हर संभव तरीके से जाहिल थे! और प्यार में तो क्या कहना, माशाअल्लाह!
खैर, जैसे होशियार लोग कहते हैं, "अपनी कमज़ोरी को अपनी ताकत बनाओ," उन्होंने भी ऐसा ही किया।
हर एक चीज़ जो ख़ूबसूरत थी, मसलन - हँसी, कविता, और पेड़, उन्होंने शिद्दत से उसे तबाह किया!
हँसी के लिए कहा - "ज़िंदगी में थोड़ा सीरियस हो जाओ!" हँसी से ज्यादा ज़रूरी तो दिनचर्या हो गई!
कविता - "मुझे 'समझ' नहीं आती है!" समझ तो यह भी नहीं आता कि आप इमोशनली बेवकूफ और डम्प हैं!
और पेड़ को कहा, "किसी को इसकी ज़रूरत है?" हर गैर-ज़रूरी चीज़ के लिए सबसे पहला ज़ुल्म सिर्फ़ और सिर्फ़ पेड़ों पर हुआ है!
तो खैर - उन्होंने सीखा कि कैसे ज़रूरत और ज़िंदगी का ताना देकर आँखों से खून टपकाया जाए! शायद उतनी ज़रूरत थी भी नहीं।
वह आपकी बात, आपकी ज़रूरत, आपके सपनों और संघर्ष में नदारद रहेंगे, पर उनको आपकी कहानी में हिस्सा चाहिए।
वह सीख लेते हैं कि कैसे हर गैर-ज़रूरी चीज़ को ज़रूरी बनाकर आपको यह कहा जाए - "आप गैर-ज़िम्मेदार हैं!" उनका अपना फ्रेमवर्क है, और उसी में आपको जज करते रहेंगे!
और खैर, यह भी तो है - गलत जगह पर आप कितने भी सही हों, आपकी वैल्यू नहीं होगी!
सनद रहे - जाहिलों को मोहब्बत और ज़िंदगी सिखाई नहीं जा सकती है!
© मनीष के.
“From the Collection of Articles: 'Unpolished Opinions' ”