22.8.25

मैजेंटा लाइन

तुमसे अलग होकर इन दिनों तुम्हीं को खोज रहा हूँ, जैसे कोई प्यासा रेत में पानी तलाश रहा हो।

तुम्हारी वह नन्ही-सी हथेली, जिसके स्पर्श भर से पूरी दिल्ली ख़ूबसूरत लगने लगती थी।
तुम्हें याद होगा, वह कालकाजी—मैजेंटा लाइन से वॉयलेट लाइन तक का पैदल रास्ता।

तुम्हारे बुलाने पर मैं अक्सर बहाना करता था—“इतना लंबा चलकर मेट्रो बदलकर कौन तुम्हारे पास आएगा?”
परसों बिना किसी बात या, जैसा तुम कहती थी, बिना किसी काम के मै कही नहीं जाता हूँ — वहाँ गया!
महसूस किया कि तुम, तुम्हारे कंधे पर छोटा बैग और तुम्हारे साथ-साथ चलने की वही आहट मेरे साथ थी।

यह कोई पागलपन नहीं था, बल्कि पूरी सतर्कता के साथ—और बिना किसी काम के!
तुम्हारे साथ चले रास्तों पर, तुम्हारे बिना भी चलना अच्छा लगता है।

तुमने अपनी दोस्त को वह जापानी कहानी सुनाई थी—“गलत ट्रेन में बैठो, तो जितनी दूर जाओगे, लौटने में उतनी ही तकलीफ़ होगी।”

यह सोचते हुए भी, तुम्हारे साथ जिया हर पल अब भी अच्छा लगता है—तुमसे अलग होकर भी।
तुम्हारे संग जिया हर झूठ भी, किसी भी दुनियावी सच से कहीं ज़्यादा प्यारा है।

-मनीष के.

[#लघु प्रेम कथा = लप्रेक]

तीसवें जन्मदिन पर

यह पूरा दिन ठीक वैसे बीत गया,
जैसे पिछले कई सालों से बीत रहा था।
दो-चार औपचारिक शुभकामनाएँ,
और ढेर सारा झूठ—
बीच में पसरा हुआ उदासियों का सूनापन।

एक स्याह अँधेरा
मुँह फैलाए
मुझे निगल जाने को तैयार खड़ा है
बदल गए हैं सब—
जो कभी कहने को अपने थे,
फ़क़त सिर्फ़ अपने।

दिल भी, धरती की तरह
बस अपनी दिनचर्या निभा रहा है
पास बचा है अब बस—
अँधेरा, सूनापन,
और शुष्क होती जा रही यादें।

धीरे-धीरे
दुनिया को बाज़ार लील जाएगा,
और तुम्हारी यादें—
मुझे।

-मनीष के.

26.10.24

उनके अंदाज़-ए-करम

'वह' आते हैं जैसे कोई ठंडी हवा का झोंका हो! उनका मतलब 'वह' से है, कोई धर्म, जाति, लिंग या रंग-रूप से निर्धारण नहीं है! वह कोई भी हो सकता है!

तो हां, वह आते हैं और आते ही रहते हैं! आप उनको रोक नहीं पाएंगे! इतना हमदर्दी और प्यार लुटा देंगे कि आप कुछ कह नहीं पाएंगे!

और आप बेचारे, मोहब्बत के मारे, गम और खुशी में तरसे हुए लोग, जिन्हें भीख मांगने से भी थोड़ी तवज्जो नहीं मिली हो, वह सातवें आसमान के ऊपर पहुंच जाते हैं।


धीरे-धीरे, जो पहले कभी देखा नहीं था, उनका 'मतलब' आता है जैसे महंगे होटल में खाने पर लगा 'टैक्स'! फिर आप जितना भी थ्योरी लेकर बैठे रहो—कि आदमी से दिल से जुड़ना चाहिए न कि जरूरत से!

वह आपको खत्म कर देते हैं! आपकी सोच, आपकी हंसी, आपकी जिंदगी! वह वैताल की तरह आप पर लटके हुए आपकी आत्मा को खाते रहेंगे! अपना मतलब सिद्ध करने के लिए अपना उल्टा-सीधा ज्ञान पढ़ाएंगे,

और आप सब करेंगे! उनके लिए आप बस एक साधन हैं, जिसे किसी भी तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है! आपके मुंह से खून निकल आए पर इनका मतलब खत्म नहीं होता! 

हर गुजरते दिन में आप सोचेंगे कि कभी यह आदमी सुधर जाएगा, पर मजाल है कि वह आपको छोड़ दे! 


सनद रहे—हर क्रूरता दिखाई नहीं देती है!

© मनीष के.


“From the Collection of Articles: 'Unpolished Opinions' 

21.4.24

सपनों का फरेब

यह कोई गद्य नहीं है ! या कोई अतुकांत कविता भी नही है ! यह एक विशुद्ध कहानी है ! यह तब की क्रूर कहानी भी नहीं है जब भारत, ईरान और रूस की स्वेत जातियां एक होती थी ! यह शायद उससे पहले की कहानी जब पिरामिड की सभ्यता से पहले देवदासी रुना और एकिंदु 'प्रेम ' जैसे किसी सवेंग  की तलाश में थे  ! जिस कहानी के बाद मिस्त्र ने पिरामिड बनाना सीखा ! मृत्यु से बचने की संजीवनी लेकर मनुष्य सम्राट गिलगमेश अभी लौटे नहीं है ! यह ऐसी कोई ऐतिहासिक प्रेम और रोमांच से भरी कहानी भी नहीं है

यह कालखण्ड की कहानी नहीं है ! जिसमें असाधारण बल वाले राजा, जातियों में बटी प्रजा, खून से लतपथ राज्य ध्वज की कहानी है ! जिसमे मोहित हो गयी दूसरे देश की राजकुमारियाँ, जबरन लायी गई रानियाँ .... या बिल्कुल अभी अपने राज्य प्रेम के लिए ... किसी राजकुमार को बंदी बनवा के, ख़ुद के लिए मृत्यु दंड मांगती हुई राजकुमारी है ! इस कहानी में कुछ भी देवत्व जैसा नहीं है ! कुछ भी उम्मीद से बढ़कर नही है ! कुछ भी शायद उम्मीद सा भी नहीं है !

यह नदियों की कहानी नहीं है ! जिसमे कही से कही आ के मिल गयी सारी नदियाँ ! यह नर्मदा और सोन की लोक -कथा भी नहीं है !  और नदियों में समाहित हो गयी कितनी पीढियां ! और फिर धीरे – धीरे पीढियां लील गयी सारी नदियाँ ! सनद रहे - शुद्धता का गुरुर भी आपको किसी लम्पट की तरफ़ शायद ले जाए !

यह बस एक कहानी है ! यह कहानी है उन फ़रेबी सपनों की जब वह रेशम के धागे में ,आग का गोला बांधकर  नचाता रहा और उसे लगा शायद यही प्रेम है ! उसे लगा ख़्वाबों के बाहर भी ‘ सकल बन फूल रही सरसों’ जैसा मखमली सा कुछ होगा ! यह कुछ ऐसा जिसमे लोग कहते थे – ‘ कि कुछ बुरा तो मेरे दुश्मन के साथ भी नहीं हो’ ! जिसमें बहुत कुछ बचा लेते थे लोग कहने से पहले / बोलने से पहले ! जिसमे सब विशुद्ध 'बनियवाद' नहीं था ! जिसमें शायद कल्पना में जीने या सपने देखने या स्वतंत्र होने की सजा नहीं थी ! वह होते थे प्रेम में शायद या शायद नहीं ! या शायद वह ‘बड़े’ होते थें प्रेम जैसे सवेंग से ! साँस खुरच कर जी जाने वाली जिंदगी से ! जिनके प्रेम का मुक्कम्मल होना इस बात पर निर्भर नहीं करता था कि - वह रोज़मर्रा का हुआ या नहीं ! Please note that nothing is beautiful if it does not include 'Freedom'. Freedom of choice for being together, crying, laughing, or separating. 

वह रेशम का धागा जल चुका है ! आदमी अब सूखी हुई नदी की बची रेत फांक रहा है ! बारूद विश्व शांति का नया नियम है ! नियम है – अधेरों को उजाला कहा जाये ! बकरी और लोमड़ी ने मिलीजुली सरकार बना ली है ! घरों से उठ रही है सड़ांध – रिश्तों की, रेफ्रीजरेटर में रखे ताजे फ़लों की ! दिल, बदन अब दिमाग के लिए काफ़िर हो चुके है ! प्रेम में बची है ज़िल्लत, और अथाह नफ़रत ! जो रोज़मर्रा जैसे होकर ना मर जाये वह अब प्रेम नही है ! उसे टाइमपास की 'केटेगरी' में रखा जायेगा ! हमने अपनी सोच और भावना सबकी देखादेखी में नीलाम कर दी है ! सब कुछ टेंडर में दे दिया गया है ! बची है पथरीली आँखें , जिनके नसों में कुछेक शब्द तैर रहे है ! सिर बदन पर रखा कोई बोझ है !

एक टूटा हुआ आदमी रुबाब(Rubab) बजाता हुआ गा रहा है – ‘ मतकर माया को अहंकार ...’ ! नदी के मुहाने शेर, गाय दोनों प्यास से जूझ रहे है ! उसी रेगिस्तान में इक फूल और एक आम का पेड़ उगने की धुन में है ! समय,संभ्यता और एक पुराना प्रेमी इनको जड़ से उखाड़ के तेज़ाब डालने की फिराक में है !  सांसे खुरच रही है ! पर यह बस नाटक है ! होंठ अपशब्दों के पाप के भागी है ! बुद्धि, भावना की हत्या कर चुकी है ! एक तोता उड़ने की हद में है ! पथरीली आखें या होठ, सूखे फूल या नदी ! कोई रो रहा है – किसी की उंगली – एक गर्दन काटते हुए कट गयी है ! पर मुहिम है की जिसकी उंगली कटी है उसे इन्साफ मिले ! पता नहीं चल पा रहा है कि – सपनों में फ़रेब है या सपने ही फ़रेब के है !

 - मनीष के.

10.3.24

कहानी

कहने को एक कहानी है यूँ कहूँ तो बेचने को एक कहानी है ! यह कोई अतुकांत कविता नहीं है ! नयी वाली हिंदी का गद्य भी नहीं है ! 'emotions' में लपेटा कोई मर्सिया  भी नहीं है जिसे आधुनिकता के नाम पर मै आपको बहला - फुसला के बेचना चाह रहा हूँ ! इसमें कोई 'Moral-policing' या 'modern-art' का भी छलावा नहीं है ! यह एक  विशुद्ध  कहानी है जिसका किसी भी जीवित या मृतक व्यक्ति से सम्बन्ध महज एक सयोंग होगा ! कहानी जिसमे सब कुछ ढीला छोड़ दिया गया है ! आप डोर को अपनी तरफ़ खींचकर तोड़ सकते है ! या फिर 'Cancel' कर सकते है ! या 'Boycott' भी, अगर आपके पास ' X' और fans है तो  !

कहानी जिसमे सबकुछ बिक रहा है - तेल,साबुन, मंजन से लेकर खून और स्पर्म तक ! कहानी जिसमे बिक रही है - पेंटिंग,मांडला, रंगोली से लेकर दिल, दोस्ती और वफ़ा !
कहानी जिमसे बिक रही है - कविताएँ, खुद कहानी, गज़ल से लेकर नेकी, नियति से दुआ तक ! कहानी जिसमे बेचे जा रहे है - पेड़, जंगल, नदी, झरनों से लेकर परिवार, रिश्तों और अपनों तक !

... अमां यार ! क्या वही पुरानी ढपली - पुराना राग ! तुम कहानी सुना रहो हो या मानव - सभ्यता के जनाजें में पढ़ा जाने वाला मर्सिया सुना रहे हो ! 

ठीक है मुझे माफ़ करे मै कहानी को किसी दूसरी तरफ़ मोड़ता हूँ ! आप कहे तो कहानी में बिल्कुल ताज़ा ( हिंदी में कहे तो -'Fresh-Input') डालता हूँ ! तुमने वह कहानी पढ़ी जिसमे Human-genes को modify करके एक सुपर-मानव का फेज-वन सफल हुआ ! जिसे ऑक्सीजन, वाटर, फूड्स या रिश्तों की ज़रूरत नहीं है ! 

 ... अमां यार फिर वही ! रिश्तों की ज़रूरत तो नहीं वाली कहानी काफी पुरानी है ? तुम भी पुराना माल चिपका रहो हो कहानी में !
 
अरे नहीं बस थोडा 'sensitive-touch' देने के लिए ! ऐसे ही सब बिकता है न ! ख़बर, कहानी, बेवफाई, तानाशाह, सरकार, हुक्मरान से लेकर चपरासी तक ! बस कहानी में थोडा touch चाहिए ! 
Algorithm उसे  promote कर देगी ही !  सारे झूठ-वीर और उठाईगीर इसी कला में ही तो निपुण है ! तभी तो कितने सुपर-मास्टर है जो Algorithm हैक करके सपने बेच रहे है ! 'शिक्षा, ज्ञान, विनम्रता, मानवता और सत्य ' गुमशुदा कर दी है इन सब सुपर-मास्टरों ने अपने curriculum से और मज़े की बात इसकी गुमशुदगी की कोई   रिपोर्ट भी दर्ज नहीं है ! एक्चुअली, SP सर को मास्टर साहब के साथ अगले महीने पॉडकास्ट करना है तो उसकी तैयारी में व्यस्त है ! इंगेजमेंट होगी तभी ब्रांड्स मिलेंगे न ! 

कुछेक लोग चार्टेड प्लेन में जाकर धर्म बेच रहे है ! मुआफी के साथ 'बचा' रहे है ! जाने कब किसका नोटिस आ जाये ! या उनकी ट्रोल आर्मी  - कि बेवकूफ आदमी अब कोई घोड़े से तो जायेगा नहीं इतना दूर ! और उनके समर्थक ताली बजाकर कहेंगे - वाह सर क्या जवाब दिया ! यह साले 'WhatsApp university' वालों को ! क्या तुकबंदी बनायीं है ! बस आप ही आप है ! आप न होते तो कितना अँधियारा था ! और वह फिर किसी नयी जगह धर्म बचाने कैमेरा, रिंग -फ़्लैश ,माइक के साथ अपने चार्टेड प्लेन में रवाना हो जायेंगे ! कसम है आपको जो मोह-माया से दूर नहीं रहे तो ! 

एक कहानी सरकार की भी है ! चलो बस एक लाइन लिखते है - कृपया सर्कस करना बंद कीजिये ! देश बचाइए पर उसके साथ धरती भी ! क्योंकि अभी मंगल पर जाने के हाईवे का टेंडर का धाधली अपने शुरू नहीं की ! तो थोड़ा नदी, पहाड़, झरना, तितली और मानवता बचाइए ! और हां सर्कस बंद नहीं कर सकते है तो थोडा कम कीजिये ! प्लीज ! 

हमेशा सोचता हूँ  एक कहानी प्रेम पर लिखूं ! पर जाति, धर्म, ढ़ोंग, प्रेत, झूठ, फ़रेब और हां  CTC,गोत्र जैसे शब्द मुझे अड़े हाथों लेकर लप्पडीया देते है ! फिर भी चलो एक 'Modern Love Story' try करते है ! एक लड़का है ! एक लड़की है ! दोनों हद दर्ज़े  के झूठे और मक्कार है ! उन्हें सब कुछ चाहिए ! फ्लैट, गाड़ी, ट्रिप्स - उन्होंने सब प्लान करा है ! सिवाय हँसी के , अपनेपन के , दोस्ती के और इमानदारी के ! 

अरे, रुको-रुको मनीष ! फिर वही बात यह तो judgmental कहानी है ! हमें नहीं चाहिए - तुम्हारा घड़े से नदी पार करने वाला प्रेम या किसी टूटी नाव, लाश के भरोसे ! यह सब तो कहानी भी नहीं है ! किद्वान्तियाँ है ! जागो !

पर उसका क्या जिसमे कहते है - 'life is all about values' या चीजें भर लेने से खुशियाँ नहीं आती है ?

अरे य़ार ! तुम्हरी दिक्कत यही है - हमेशा कहानी को पुरानी तर्ज पर कर देते हो ! इसीलिए कोई कहानी बिकती नहीं है ! 

ठीक है फिर मै अगली बार कुछ अलग लिखूंगा ! बस सनद रहे - यह सब कहानी है ! और इसका किसी से कोई सम्बन्ध नहीं  है !

© मनीष के. 

नोट - typo/वर्तनी दोष के लिए माफ़ करे !